मन में असीमित ऊर्जा, शक्ति और सामर्थ्य है– नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

टिहरी गढ़वाल । नरेन्द्र नगर के ग्राम खेडागाड में चल रही भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि जिस मन को शिक्षित नहीं किया गया, आंतरिक अनुशासन का पाठ नहीं पढ़ाया गया वह मन बड़े दुःख का कारण बन सकता है। मन को थोड़ी सी भी छूट देना, हमारी तपस्या को विफल कर सकता है। मन में असीमित ऊर्जा, शक्ति और सामर्थ्य है।
महाराज ने कहा कि सत्य का पालन करना, मन को शांत करने और आत्मा को ईश्वर के निकट लाने की विधि है। ध्यान और वैराग्य के माध्यम से मन को वश में किया जा सकता है। सत्य बोलना, सत्य आचरण करना और सत्यनिष्ठ रहना, सफलता और सम्मान का मूल मंत्र है। सत्य की ओर बढ़ने का अर्थ है अज्ञान को दूर करना और प्रकाश की ओर बढ़ना है। सत्य का पालन करना, सरल, निष्कपट और राग-द्वेष से रहित होना, जीवन को दिव्य बनाने की दिशा में पहला कदम है। सत्यनिष्ठ आचरण से जीवन में श्रेष्ठता का उदय होता है। सत्याचरण से शुभ कर्मों की ओर प्रवृत्ति होती है, जिससे जीवन आनंद और सौंदर्य से भर जाता है। पहला पुरुषार्थ ही धर्म है। धर्म, जिसे ‘पहला पुरुषार्थ’ कहा गया है, का अर्थ है जीवन के सही मार्ग पर चलना और नैतिक मूल्यों का पालन करना। आपके प्रत्येक कर्म शुभकर्म बनें। शुभ कर्म ही जीवन का सच्चा मार्ग है। जब हम शुभ कर्म करते हैं, तो हमारा जीवन आनंद और समृद्धि से भर जाता है। शुभ कर्मों से समाज में सद्भाव और प्रेम बढ़ता है। ज्ञान, विवेक और विचार का आश्रय लेकर किये गए शुभ कर्म निश्चित ही फलीभूत होते हैं, अतः असफलता के भय को त्याग कर अहर्निश पारमार्थिक कार्यों में संलग्न रहें।
आज इस अवसर पर श्री करन नेगी, श्री रणजीत सिंह नेगी, श्रीमती रेखा देवी, श्रीमती मोनिका नेगी, कु अंजलि, संगीताचार्य श्री रवि जोशी, श्री गोल्डी नौटियाल, साध्वी माँ देवेश्वरी एवं बड़ी संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे।