बुधू- आंदोलनकारी प्रमाण पत्र मिलेगा
व्यंग्य: यूँ तो बुधू का उत्तराखंड राज्य आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है। बुधिया के पिता थे, लेकिन सरकार ने जब आंदोलनकारी प्रमाण पत्र बांटने शुरू किए तो वह स्वर्ग लोक सिधार चुके थे।
देवभूमि की राम राज्य वाली सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों के आश्रितों को भी कुछ देने का निर्णय लिया। तो बुधू बुधिया के दिलों में कुछ-कुछ होने लगा है। रामप्यारी सरकार ने कोरोना काल में भी कटा भर राशन दी थी। अब चेतावनी जारी की है कि जिसने वैक्सीन नहीं ली है उसको सरकारी राशन नहीं दी जाएगी।
मैं बुधू अपनी बुधिया सहित कसम खाता हूं कि टीके लगा दिये हैं। सरकार माई बाप कहें तो और भी लगवा देंगे। कहां कहां लगाने हैं, पूछेंगे नहीं। बस पुलिस मत भेजें। सरकारी जासूस ही काफी हैं।
सरकारी टीके का बड़ा महत्व होता है। बुधिया के बाबा के पड़ोसी पर कई आपराधिक मामले थे। राज्य आंदोलन के वक्त पुलिस ने धर लिया। ससुर जी ठहरे असली गांधीवादी आंदोलनकारी, सो पुलिस छेड़ी नहीं।
उत्तराखण्ड राज्य बन ही गया तो देवभूमि के नारायण को प्रसाद वितरण करना ही था। राज्य आंदोलनकारियों को सबसे पहले देना था। बड़ों को लाल बतियां। छोटों को प्रमाणपत्र । छोटों में बड़े पहले की नीति के तहत ससुर जी के पड़ोसी को प्रथम राज्य- आंदोलनकारी होने का राज प्रसाद दिया गया। ससुर जी टापते- टापते चल बसे। अब आस जगी है। रामप्यारी पार्टी वालों के साथ गांधीवादी पार्टी के लोगों से प्रार्थना है कि मैकाले वालों से सिफारिश करने की कृपा करें। आपकी पीढ़ियां फलें फूलें।
आपका-बुधू।
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