*मानवता का दीप जलायें* नीलम डिमरी
* मानवता का दीप जलायें * नीलम डिमरी
रचनाकार – नीलम डिमरी, गोपेश्वर
मत रखो अपना बैर किसी से,
सबको प्यार से गले लगायें,।
नफरत के मिटाओ अब अंधेरे,
मानवता के दीप जलायें
मानवता के दीप जलायें।।
मानवता के बंदे बनकर,
दीन -दुखियों के कष्ट मिटायें।
कि मानवता इक सीढ़ी है,
प्रभु दर्शन हम इसी से पायें,
मानवता का दीप जलायें,
मानवता का दीप जलायें।।
दानव सा क्यों व्यवहार कर रहा,
खुशियों का तू त्रास हर रहा,
अपने बाहुबल पर तू इतना न झूम,
क्यों अपने संस्कारों को फूंक रहा,
निज स्वार्थ को त्याग कर अब,
इंसानियत का मजहब अपनायें,
मानवता का दीप जलायें,
मानवता का दीप जलायें।।
साम्राज्य छोड़ा बुद्ध ने जब,
मानव हित की सेवा को चुना,
विश्व शान्ति और प्रेम का दिया संदेश,
सर्व धर्म, प्रेम के जाल को बुना,
गीता उपदेश का पालन कर,
कर्ण के सर्वस्व दान को न भुलायें,
मानवता का दीप जलायें
मानवता का दीप जलायें।।
छल -कपट का तू हथियार छोड़,
दीन -दुखियों का सहारा बनना,
करुणा,ममता, हमदर्दी इस दिल में,
तहजीब की नाव का किनारा बनना,
बाहरी संस्कृति को छोड़कर अब,
अपनी संस्कृति को सहज अपनायें,।
मानवता का दीप जलायें,
मानवता का दीप जलायें।।