महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर
विक्रम बिष्ट:
बेचैन करने वाली तमाम खबरों के बीच अमेरिका से एक खुशखबरी आई है। वहां की संसद ने महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर की विरासतों के संदर्भ में एक विधेयक पारित किया है। अमेरिका के नौनिहाल भी अब गांधी दर्शन से परिचित होंगे।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब कोविड 19 महामारी से सबसे ज्यादा त्रस्त अमेरिका में बहसी पुलिसकर्मी द्वारा अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लायड की नृशंस हत्या की गई थी। इसके खिलाफ अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक हिंसक प्रदर्शन हुए थे।
डॉ मार्टिन लूथर किंग ने नीग्रो लोगों के खिलाफ गोरों के अन्याय का प्रतिकार गांधी के बताए अहिंसा, प्रेम के रास्ते किया था। गोरों की अंत:करण की चेतना जगाकर नस्लवाद पीड़ित काले लोगों को समान नागरिक अधिकार दिलाए थे। किंग जूनियर को अमेरिका का गांधी माना जाता है।
उस मसीहा की महात्मा गांधी से कभी मुलाकात नहीं हुई। लेकिन गांधी के सत्याग्रह दर्शन ने उनको इतना प्रभावित किया कि उन्होंने मान लिया था कि उनका अहिंसात्मक संघर्ष ही दलित पीडित जाति के लिए सबसे मजबूत शस्त्र हो सकता है।
अपने वैचारिक, गुरु गांधी का देश भारत किंग के लिए तीर्थ रहा है। बताया जाता है कि उनके अध्ययन कक्ष में केवल महात्मा गांधी का ही एक चित्र था।
4 अप्रैल 1968 को किंग की हत्या की गयी। उनकी पत्नी कोरेट्टा ने किंग के शव को गांधी के चित्र के सामने लिटाया और चित्र की ओर देखते हुए कहा ‘ हे गुरु तुम्हारे इस शिष्य ने जीवन भर तुम्हारे दिखाए मार्ग का अनुसरण किया। आज उसी गोली की मार से अपने प्राण त्याग दिए जिसने तुम्हारे प्राण लिए थे।’
किंग कहते थे प्रेम और अहिंसा के मसीहा ईसा और गांधी के मार्ग पर चलने वालों का अंत भी ईसा और गांधी की तरह ही होगा।
नाथूराम गोडसे ने तो गांधी के भौतिक शरीर को निर्जीव किया था। आज हमारी राजनीति की सबसे बड़ी शक्तियां- घृणा, द्वेष, असहिष्णुता, संकीर्ण जातीयता, अधर्म और भ्रष्टाचार हैं। एक-दूसरे की उछाड़-पछाड़ में कौन पीछे है। कोरोना से बचने के लिए तो हम मास्क, सेनेटाईजर का उपयोग कर सकते हैं। देर सबेर जीवन रक्षक टीका अभी जाएगा। लेकिन विभाजक-विनाशक राजनीति से बचने-बचाने लिए कौन मसीहा आने वाला है? नई पीढ़ियों के दिमाग से या तो गांधी जी का नाम पोंछने की कोशिशें जारी हैं या उसे विकृत करने में कुछ लोग गर्व महसूस करते हैं। गांधी का प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम’ हमारे जीवन कर्म का थोड़ा सा ही सही हिस्सा नहीं है तो 2 अक्टूबर भी सालाना पाखंडो में ही तो सुमार कर दिया गया है।