भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है: डॉo मेंदोला
गढ़ निनाद समाचार * 1 अक्टूबर
देवप्रयाग: राजकीय महाविद्यालय देवप्रयाग में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के तत्वाधान में आयोजित आचार्य चक्रधर जोशी व्याख्यानमाला के अंतर्गत गांधी का दर्शन विषय पर दूसरे दिन कार्यक्रम अधिकारी डॉ० अशोक कुमार मेंदोला असिस्टेंट प्रोफेसर अर्थशास्त्र ने अपने संबोधन में कहा महात्मा गांधी भारतवर्ष को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे। उन्होंने माना था कि भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है, इसलिए उनका दृष्टिकोण था कि भारत को विकास-मार्ग पर ले जाने के लिए ‘ग्राम-विकास’ प्राथमिक आवश्यकता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सर्वोपरि स्थान दिया था। उनकी दृष्टि में इस अर्थव्यवस्था का आधार था-‘ग्रामीण जीवन का उत्थान’। इसीलिए, गांधीजी ने बड़े-बड़े उद्योगों को नहीं, वरन् छोटे-छोटे उद्योगों को महत्व प्रदान किया, जैसे-चरखे द्वारा सूत कताई, खद्दर बुनाई तथा आटा पिसाई, चावल कुटाई और रस्सी बांटना आदि।
गांधीजी शिक्षा से अर्थशास्त्री नहीं थे, किन्तु इस विषय में भी उनका चिन्तन क्रांतिकारी है। उन्होंने कहा था कि अपनी जरूरत से अधिक संग्रह करने का अर्थ है-‘चोरी’। उनके मतानुसार अर्थशास्त्र एक नैतिक विज्ञान है- ”इंसान की कमाई का मकसद केवल सांसारिक सुख पाना ही नहीं, बल्कि अपना नैतिक और आत्मिक विकास करना है।” इसीलिए उन्होंने त्यागमय उपभोग की बात का समर्थन किया था।
तीसरे दिन मुख्य वक्ता प्राचार्य डॉ० विद्याधर पांडेय ने अपने संबोधन में कहा कि भारत की आजादी में महात्मा गांधी का योगदान अतुल्य है। पूरी दुनिया उन्हें सत्य और अहिंसा के पुजारी के रूप में जानती है। अपने सादा जीवन और उच्च विचारों के चलते उन्होंने विश्व को सत्य और अहिंसा की ताकत से परिचित कराया। गांधी के सत्याग्रह की ही बदौलत अंग्रेज भारत छोड़ने पर मजबूर हो गए। उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में अहिंसा और सत्याग्रह को अपना मजबूत हथियार बनाया था। इसी कारण 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है
चौथे दिन मुख्य वक्ता डॉ० महेशा नंद नौरियाल असिस्टेंट प्रोफेसर संस्कृत ने अपने संबोधन में कहा कि’ दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’- लोकप्रिय गीत की ये पंक्तियां बापू के करिश्माई व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रशस्ति-गान हैं। गांधी-दर्शन के चार आधारभूत सिद्धांत हैं- सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव। उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है। उन्होंने सत्य की आराधना को भक्ति माना। उनका विचार था, ‘अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है। अहिंसा साधन है और सत्य साध्य।’ शांति प्रेमी रूस के टॉलस्टाय और अमेरिका के हेनरी डेविड थॉरो उनके आदर्श थे।
पांचवे दिन मुख्य वक्ता डॉ० मोहम्मद आदिल कुरेशी असिस्टेंट प्रोफेसर जंतु विज्ञान ने अपने संबोधन में कहा कि बापू सर्वधर्म समभाव के प्रणेता थे। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का उदात्ता सिद्धांत जीवन का मूलमंत्र था। उनकी प्रार्थना सभाओं में गीता के श्लोक, रामायण की चौपाइयां, विनय-पत्रिका के पद के साथ ही नरसी मेहता व रवींद्रनाथ टैगोर के भजन आदि के प्रमुख अंशों का पाठ होता था। उनके हृदय में प्रेम व सभी धर्मो के प्रति आदरभाव था। इसीलिए, प्यार में ‘बापू’ एवं ‘राष्ट्रपिता’ भी कहलाए। अल्बर्ट आइंस्टीन ने सच ही कहा था। ‘आने वाली पीढि़यां, संभव है कि शायद ही यह विश्वास करें कि महात्मा गांधी की तरह कोई व्यक्ति इस धरती पर कभी हुआ था।’
डॉ० दिनेश कुमार टम्टा ने कहा कि महात्मा गांधी का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अहम योगदान रहा है। जनवरी 1915 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए। इससे पहले उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में शोषण, अन्याय एवं रंगभेद की नीति के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन किया था। महात्मा गांधी अपने अतुल्य योगदान के लिये ज्यादातर “राष्ट्रपिता और बापू ” के नाम से जाने जाते है।
छठवें दिन मुख्य वक्ता डॉ० अर्चना धपवाल असिस्टेंट प्रोफेसर राजनीति विज्ञान ने अपने संबोधन में कहा कि महात्मा गांधी के अनुसार, लोकतंत्र ने कमजोरों को उतना ही मौका दिया, जितना ताकतवरों को उनके स्वैच्छिक सहयोग, सम्मान जनक और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आधार पर कार्य करने के सुझाव को कई अन्य आधुनिक लोकतंत्रों में अपनाया गया। साथ ही, राजनीतिक सहिष्णुता और धार्मिक विविधता पर उनका ज़ोर समकालीन भारतीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखता है।सत्य, अहिंसा, सर्वोदय और सत्याग्रह तथा उनके महत्त्व से गांधीवादी दर्शन बनता है और ये गांधीवादी विचारधरा के चार आधार हैं।