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उत्तराखंड आंदोलन–

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बाकी यही नामो निशां होगा

विक्रम बिष्ट

गढ़ निनाद समाचार। 

नई टिहरी, 3 अप्रैल 2021।

विशनपाल परमार ने उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था।वह इस मायने सौभाग्यशाली रहे कि जीते जी उत्तराखंड राज्य देख लिया। परिवार नहीं था। लगभग साढ़े छः फुट के डील डोल वाले परमार की कमर उम्र के दबाव से झुक गई थी। भतीजे ने सहारा दिया। 

विशनपाल चाहते थे कि उनके सपनों के राज्य की सरकार भतीजे को एक अदद नौकरी दे। लेकिन सरकारें तो उनकी बनती रही है जिन्होंने उत्तराखंड राज्य निर्माण के संघर्ष के मर्मांतक दौर में कदम-कदम पर अड़ेंगे लगाए थे। या सपनों में भी नही सोचा होगा कि उत्तराखंड राज्य बन सकेगा। अपने पाप धोने के लिए जन आंदोलन को चिन्हित आंदोलनकारियों का ब्रह्म यज्ञ बना दिया। सत्ता का ब्रह्मभोज अपनों में तो बांटना था ना। 

पौड़ी जिला प्रशासन ने इंद्रमणि बडोनी को उनकी मौत के 13 वर्ष बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी होने का प्रमाण पत्र जारी करने की कृपा की। बताते हैं कि वह प्रमाण पत्र आजकल त्रिशंकु के पास है। शायद त्रिशंकु की सशरीर यात्रा उस न सही इस देवभूमि में पूरी हो जाए। रणजीत विश्वकर्मा होनहार पर्वतारोही थे। एनसीसी के अपने साथियों के साथ उन्होंने हिमालय की फै पीक की चढ़ाई की थी। पत्रकार जगमोहन रौतेला (युगवाणी) को साढ़े चार साल पहले रणजीत विश्वकर्मा ने बताया की एनसीसी के ट्रेनिंग पाये उन लोगों की सीडीएस के लिए सेना में विशेष भर्ती का कोटा उच्च अधिकारियों ने अपनों अपनों को बांट दिया था। रणजीत विश्वकर्मा का भी अपना कोई परिवार नहीं था। तब वह डायलिसिस पर थे। पिथौरागढ़ जिला प्रशासन ने डेढ़ दशक तक राज्य आंदोलन में सक्रिय रहे रणजीत विश्वकर्मा को बता दिया था कि राज्य आंदोलन में उनका कोई योगदान नहीं था।

जारी—–


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Govind Pundir

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