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कविता: वसंतोत्सव

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विद्या और संगीत की देवी माँ सरस्वती को वन्दन कर, बसंत पंचमी के सुअवसर पर एक छोटी सी कविता भेंट कर रहा हूँ । 💐💐🙏🙏

हे बसंत, तुम आओ,
ठिठुरी-ठहरी शुष्क धरा को,
पुष्पित पल्लवित और सुगंधित कर दो।

किरणों में भर गई अरूणाई,
अलसाई धूप ने ली अंगड़ाई,
नख-कर्ण भेदन कर तरुणी का,
पुष्पाभूषणौ से सुसज्जित कर दो।

हे बसंत तुम आओ।
पंछी का कलरव, भवरों का गुंजन,
कल कल निनाद, झरनों की छन छन,
वन्दन कर वीणा वादिनी का,
कण कण संगीतमय कर दो।

हे बसंत, तुम आओ।
घोलो बसंती बयार में मदिरा ,
बरसाओ प्रेमरस बिन बदरा,
छितराओ बहुरंग छटा में,
शोख फ़िजा सतरंगी कर दो।

हे बसंत, तुम आओ।
पिघले हिम, बहे अविरल जल,
सींचे जीवन, कलकल छलछल
ह्रदय से बेकल अल्हड़ सरिता को,
सागर में समाहित कर दो।

हे बसंत, तुम आओ।
भरो इन्द्रधनुषि रंग मैदानों में,
भरो अन्न फ़सलों के दानों में,
कली-कली रस के प्यासे,
भंवरों को भ्रमित सा कर दो।

हे बसंत, तुम आओ,
ठिठुरी-ठहरी शुष्क धरा को,
पुष्पित-पल्लवित और सुगंधित कर दो ।

🙏 पीताम्बर 


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