जल,जंगल, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे हों विधानसभा चुनाव का मुख्य एजेंडा-किशोर
नई टिहरी। वनाधिकार आंदोलन के संस्थापक-प्रणेता व सूबे के पूर्व मंत्री किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड के जन, जल, जंगल, ज़मीन, जवानी और जलवायु परिवर्तन को बचाने को आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्य एजेंडा बनाने का सभी Stakeholder से आग्रह किया है।
उन्होंने विशेषकर चुनावों के इष्ट देव मतदाताओं से इस सम्बन्ध में प्रार्थना की है कि वे अभी से राजनीतिक दलों व नेताओं से जल, जंगल व जमीन पर अपने पुश्तैनी हक़-हक़ूक़ बहाल करने की बात करें और अपने अधिकारों की रक्षा हेतु प्रहरी बन जाँय।वनाधिकार कानून-2006 उनके पुश्तैनी अधिकारों का रक्षक है।
उपाध्याय ने अपने खुले पत्र में कहा है कि उत्तराखंड के निवासी मुफ्तखोर नहीं हैं, वे मुफ़्त में कुछ नहीं चाहते हैं, वे स्वाभिमानी हैं।
हमारे जल, जंगल और जमीन पर बिना क्षतिपूर्ति दिये जो कब्जा किया गया है, हम उसका मुआवजा चाहते हैं, उसकी क्षतिपूर्ति न देना, मानवता के प्रति अपराध है।
क्षतिपूर्ति के रूप में उत्तराखंडियों को बिजली-पानी और महीने में एक रसोई गैस सिलेंडर निशुल्क देने, परिवार के एक सदस्य को योग्यतानुसार पक्की सरकारी नौकरी, उत्तराखंडियों को OBC घोषित कर केन्द्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण, एक यूनिट आवास बनाने के लिए रेत, बजरी, पत्थर और लकड़ी निशुल्क, quality शिक्षा व स्वास्थ्य सेवायें नि शुल्क, जंगली पशुओं से जन-धन हानि पर मुआवजा आदि वनाधिकार आंदोलन की मांगों का राजनीतिक दल समर्थन करें और इस सम्बन्ध में अपनी स्पष्ट सोच मतदाता के सामने लाएं।
उपाध्याय ने बताया कि वनाधिकार आंदोलन ने इस सम्बन्ध में सभी राजनीतिक दलों के सामने, केन्द्र व राज्य सरकार के सामने भी अपनी बात रख दी है।
जलवायु परिवर्तन पर अगर गंभीरता न दिखाई गई तो एक दिन हिमालय पर बर्फ और उससे निकलने वाली नदियों में पानी देखने के लिए लोग तरस जायेंगे।राष्ट्र की प्राण वायु, जल और अन्न सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। गंगा में पानी न रहने पर गौमुख से गंगासागर तक के तीर्थों के गौरव का क्या होगा?
इन सब पर आज सोचने की ज़रूरत है। गंगा-यमुना के आशीर्वाद से सिंचित उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, बिहार व प.बंगाल की स्थिति क्या होगी? विचार करिये।
वनाधिकार आंदोलन ने इन प्रदेशों और अभी हाल ही में केंद्र सरकार के मंत्री प्रह्लाद जोशी जी को इस आसन संकट के बारे में आगाह किया है। उपाध्याय ने आशा व्यक्त की कि लोग वनाधिकार आंदोलन की भावना को समझेंगे और उसे समर्थन देंगे।
कहा हम उस मुकाम पर हैं, सम्भल गये तो बच जाएँगे, नहीं तो खत्म हो जाएंगे।