गढ़वाली भाषा और साहित्य पर डॉ. सृजना राणा की नई पुस्तक प्रकाशित

गढ़वाल की समृद्ध विरासत को सहेजती अनमोल कृति
टिहरी गढ़वाल । गढ़वाली भाषा और संस्कृति को संरक्षित और प्रचारित करने के उद्देश्य से डॉ. सृजना राणा (ओंकारानंद सरस्वती राजकीय महाविद्यालय, देवप्रयाग) की पुस्तक “गढ़वाली भाषा और साहित्य” प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक विशेष रूप से श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के एम.ए. चतुर्थ सेमेस्टर के छात्र-छात्राओं के लिए जनपदीय साहित्य (गढ़वाली साहित्य) के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। साथ ही, यह उन पाठकों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी, जो गढ़वाली भाषा और साहित्य में रुचि रखते हैं और इसकी गहराइयों को समझना चाहते हैं।
इस पुस्तक में गढ़वाली भाषा और साहित्य के विकास को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। इसमें गढ़वाली के शुरुआती साहित्यकारों जैसे तारादत्त गैरोला, भजन सिंह “सिंह”, गोविंद चातक, मोहनलाल नेगी और प्रेमलाल भट्ट की कविताओं, कहानियों और निबंधों को शामिल किया गया है। इनके साहित्यिक योगदान को रेखांकित करते हुए गढ़वाली भाषा की शब्द-सौंदर्य, व्याकरण और साहित्यिक यात्रा को भी बारीकी से समझाया गया है। पुस्तक में गढ़वाली भाषा की व्याकरण संबंधी जानकारी भी दी गई है, जिससे पाठकों को इस भाषा की संरचना और स्वरूप को समझने में सहायता मिलेगी।
पुस्तक की एक खास विशेषता यह है कि इसमें गढ़वाली भाषा के साथ हिंदी अनुवाद भी दिया गया है। यह विशेष रूप से उन पाठकों के लिए उपयोगी होगा, जो गढ़वाली भाषा से परिचित नहीं हैं लेकिन गढ़वाल की समृद्ध संस्कृति और साहित्य को समझना चाहते हैं। हिंदी अनुवाद के माध्यम से वे गढ़वाली भाषा के भाव, सौंदर्य और साहित्यिक परंपरा से परिचित हो सकेंगे।
पुस्तक की लेखिका डॉ. सृजना राणा का कहना है कि यह पुस्तक गढ़वाली भाषा को संरक्षित करने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक प्रयास है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह पुस्तक गढ़वाली भाषा और साहित्य में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
यह पुस्तक संभावना प्रकाशन, हापुड़ द्वारा प्रकाशित की गई है और अमेजन पर ऑनलाइन भी उपलब्ध है। पुस्तक खरीदने के इच्छुक पाठक इसे अमेजन से मंगवा सकते हैं। गढ़वाली भाषा और साहित्य को संरक्षित करने और इसे बढ़ावा देने के इस प्रयास में अधिक से अधिक लोगों को जुड़ना चाहिए ताकि हमारी समृद्ध लोकभाषा आने वाली पीढ़ियों तक जीवंत बनी रहे।