बसंत ऋतु आ रही
						रचनाकार – नीलम डिमरी
मस्ती अजब सी छा रही, 
देखो मदहोश पवन गा रही, 
खिल उठी अब कली -कली, 
हर गाँव, हर गली -गली, 
सुगंध चहुंओर बिखरा रही, 
देखो, बसंत ऋतु आ रही।।
तितलियां अब निकल पड़ी हैं, 
फूलों का रस वो चूस रही हैं, 
भंवरे भी गुनगुना रहे हैं, 
अपने अधरों से गीत गा रहे हैं, 
पीत हुए खेत सारे, सरसों अब हरषा रही है, 
देखो, कैसे बसंत ऋतु आ रही है।।
पहाडों पर अब बुरांश खिल उठा, 
मदहोशी में हिमालय झिलमिल उठा, 
पंछी – परिंदे, कूक -कूक करते,, 
मन – मयूर सी कविता कहते, 
पीत रंग की धरती अब, 
सबके मन को भा रही, 
देखो, बसंत ऋतु झूमके आ रही।।
पेडों पर अब बौर लगे हैं, 
मुस्कानों के फूल खिले हैं, 
मंद -मंद जब चले बयार, 
पतझड़ को नवजीवन मिले हैं, 
अधरों पर सबके देखो, 
अब कैसी मुस्कान छा रही, 
बसंत ऋतु आ रही, 
बसंत ऋतु आ रही।।
ऋतुओं का राजा है बसंत, 
नवकुसुम की हरियाली है बसंत, 
अपनी अनुपम सुंदरता को निहारने, 
अठखेलियाँ करता अब ये बसंत, 
रंग – रंगीले मिज़ाज में तो, 
प्रकृति, मधुर संगीत गा रही, 
बसंत ऋतु आ रही, 
देखो बसंत ऋतु आ रही।।
नवयौवन फूलों की अंगडाई, 
स्वर्णिम -स्मृतियां वो याद आई, 
काफल, बुरांश के ढेर अब, 
सबके मन को ये ललचाई, 
इस दिल को छू जाने वाली ऋतुराज की टोली आ रही, 
बसंत ऋतु आ रही, 
देखो बसंत ऋतु आ रही।।
नीलम डिमरी 
ग्राम —देवलधार 
गोपेश्वर
				


