राधा रानी परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण की अचिंत शक्ति हैं — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
नृसिंह भक्ति संस्थान द्वारा राधा अष्टमी का त्यौहार बडे़ धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर प्रवचन करते हुए नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि राधा रानी परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण की अचिंत शक्ति हैं। उनकी कृपा से ही कृष्ण-तत्व की प्राप्ति होती है।इसीलिए इनमें से किसी एक की उपासना से भी दोनों की प्राप्ति सुनिश्चित है। कृष्ण की शक्ति हैं राधा, कृष्ण की आत्मा हैं राधा। कृष्ण शब्द हैं तो राधा अर्थ, कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत, कृष्ण वंशी हैं तो राधा स्वर, कृष्ण समुद्र हैं तो राधा तरंग, कृष्ण फूल हैं तो राधा उसकी सुगन्ध। राधा के आराधकों ने कृष्ण और राधा का एकाकार स्वरूप दर्शाने के अनेक प्रयास किये हैं। श्रीकृष्ण और राधा अलग-अलग होते हुए भी एक हैं। पहली समानता तो यही है कि इन दोनों का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी को हुआ।कृष्ण का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ, राधा का जन्म शुक्ल पक्ष की अष्टमी को। “नारद पंचरात्र” के ज्ञानामृत सार के अनुसार राधा और कृष्ण एक ही शक्ति के दो रूप ही हैं।भगवान श्रीकृष्ण की एक पराशक्ति है, जिसका नाम आल्हादिनी शक्ति राधा है। उसे स्वरूप शक्ति भी कहते हैं। वे श्रीकृष्ण से अभिन्न हैं। यह भी मान्यता है कि ” श्रीकृष्ण” में “श्री” शब्द राधा रानी के लिए प्रयुक्त हुआ है। सूरदास जी ने अपने ग्रन्थ “सूरसागर” के एक दोहे में यह लिखा है कि श्रीकृष्ण की सोलह हजार एक सौ रानियाँ मात्र देह हैं, जबकि उनकी आत्मा राधा हैं।
जगतजननी राधा को भगवान श्रीकृष्ण की स्वरूपभूता आल्हादिनी शक्ति माना गया है। “पद्मपुराण” में कहा गया है कि राधा, श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। महर्षि वेदव्यास जी ने लिखा है कि श्रीकृष्ण आत्माराम हैं और उनकी आत्मा राधा हैं। वात्सल्य, सख्य और श्रृंगार की रस त्रिपुटि का प्रशस्त आधार लेकर अष्टछाप के भक्त हृदय महाकवियों ने जिस महाभाव की लोकमंगल प्रतिष्ठा भक्ति काव्य जगत में की गई है, उसकी मूल प्रेरक विधायिका शक्ति राधा ही हैं। वह रस की अंतः श्रोत भी हैं और रस की अतुल महानिधि भी। उनकी इस रस निधिता में समग्र शक्तियाँ अंतर्निहित हैं। संस्कृत साहित्य के अंदर राधा को काव्य और भक्ति दोनों ही क्षेत्रों में समादर देते हुए प्रेयसी, नायिका और आराध्या आदि के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। जो भी हो ब्रज में राधा की श्रीकृष्ण से भी अधिक मान्यता है। यहां तक कहा जाता है कि उन्होंने यशोदानंदन तक को पूर्णत्व प्रदान किया। वस्तुतः यहाँ चहुंओर उनका ही साम्राज्य है। यहाँ प्रत्येक शुभकार्य का श्रीगणेश “श्री राधे” के स्मरण से एवं पारस्परिक अभिवादन “राधे-राधे” कहकर ही किया जाता है।