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COVID-19 स्वास्थ्य संकट ने धूमिल की वैश्विक आर्थिक की रफ्तार, संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर गहरी मंदी पर प्रभाव

COVID-19 स्वास्थ्य संकट ने धूमिल की वैश्विक आर्थिक की रफ्तार, संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर गहरी मंदी पर प्रभाव
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डॉ० राजीव राणा,

अर्थ-शास्त्री एवं आर्थिक-मामलो के विशेषज्ञ

अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IMF द्वारा हाल ही में वैश्विक आर्थिक मंदी की घोषणा की जा चुकी है। यह मंदी वर्ष 2008 में आयी हुई वैश्विक वित्तीय संकट से ज्यादा गहरे रूप में परिभाषित की गयी है। आईएमएफ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था COVID-19 महामारी संकट से गुजर रही है। जिसका बुरा असर दुनिया की आर्थिक विकास पर पड़ा है। इससे वैश्विक स्तर पर मुख्य रूप से G-20 देशों की अर्थव्यवस्था विकास की रफ्तार प्रभावित हुई है। साथ ही वैश्विक आर्थिक विकास की रफ्तार पर भी गहरी मंदी का प्रभाव पड़ा है।

आज जब पूरा विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण से जन्मी महामारी से झुलस रहा है। जिसमें मुख्य रूप से कोरोना वायरस का संक्रमण चीन के अतिरिक्त, विकसित देशों में ज्यादा दिखा है। मुख्य रूप से अभी तक संपूर्ण यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन एवं USA ज्यादा प्रभावित हुआ है। जिसमें अभी तक कोरोना संक्रमण से विश्व स्तर पर 12,00,000 से ज्यादा लोग संक्रमित हुए है। इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था में कितना अधिक एवं गहरा है, यह दुनिया के प्रमुख शेयर बाजार जिसमें USA के डोजोन्स में लगभग 24% की गिरावट, लंदन के FTSE में आई 28% तथा जापान का प्रमुख स्टॉक मार्किट निक्की में आई 22% में आई गिरावट से दिखता है। वही क्रूड ऑयल 27 डॉलर बैरल के निचले स्तर पर आ गया है।

IMF के अनुसार G-20 देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरी मंदी का असर ज्यादा रहेगा, क्योंकि G-20 मुख्य रूप से उन देशों का संगठन है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से भागीदारी रखते है। जिसमें यूरोपियन यूनियन, USA, UK, फ्रांस, इटली सहित चीन एवं भारत मुख्य है। यह संगठन की वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 85% एवं विश्व व्यापार में 75% की भागीदारी है। अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार 2019 में जहाँ वैश्विक जीडीपी 3.4% अनुमानित थी। वही यह अनुमान घटाकर वैश्विक 2.4% तथा G-20 देशों की जीडीपी 3.1% से घटाकर 2.7% कर दिया गया है।

USA के श्रम ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार 6.5 मिलियन से अधिक लोग कोरोनो-वायरस प्रकोप से बेरोज़गार हुए हैं। इसके साथ ही कोरोना वायरस के कारण 100 से अधिक देशों में यात्रा प्रतिबंधित है। जिसका सीधे रूप से सम्बन्ध रोज़गार से है, तथा आने वाले दिनों में इसका प्रभाव अन्य विकासशील देशों पर भी पड़ेगा, चुकी सभी देश एक दूसरे से आर्थिक गतिविधियों से जुड़े है।

अन्तराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच ने एक रिपोर्ट में बताया है कि वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए लागू की जा रही लॉकडाउन नीतियों का दैनिक आर्थिक गति-विधि पर तात्कालिक और नेगेटिव प्रभाव पड़ रहा है। जीडीपी पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि लॉकडाउन कितने समय तक रहता है? जिसका सीधा उदाहरण चीन की जीडीपी अनुमान में की गई कटौती, जिसको 6.1% से घटाकर 5 प्रतिशत के अंतर्गत किया गया है। जहाँ चीन वैश्विक स्तर पर विनिर्माण का एक तिहाई हिस्सा बनाता है, और माल का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। वहीं वर्ष के शुरुवाती दो महीनों में चीनी औद्योगिक उत्पादन में 13.5% की गिरावट आई है तथा चीनी कारों की बिक्री फरवरी में 86% घट गई। वही फिच की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका और कनाडा जैसे विकसित देशों की वार्षिक बेरोज़गारी के पूर्वानुमान को तेजी से आगे बढ़ाया गया है, और उम्मीद जताई है की अकेले अमेरिका में वर्ष 2020 के अंत तक बेरोज़गारी 10 मिलियन बढ़ जाएगी।

हालांकि इसका व्यापक असर आने वाले दिनों में विकासशील देशो पर भी पड़ेगा। जिसमें प्रमुख तौर पर भारत भी शामिल है। हालांकि कई अन्य थिंक टैंक द्वारा किये गए रिसर्च के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था G-20 देशों में सबसे ज्यादा तेजी से विकास करेगी तथा भारत की जीडीपी लगभग 5.3% अनुमानित की गयी है, जो की फ़िलहाल चीन के अनुमानों 4.9% से ज्यादा होगी। परन्तु, लॉकडाउन होने से निसंदेह ही बेरोज़गारी तो बढ़ेगी ही साथ ही साथ रोज़गार सर्जन में कमी आएगी। चूकी भारत में करीब 82 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र है। जिसमें लगभग 60 से 70 प्रतिशत लोग या वर्कफोर्स मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन एवं होटल, रेस्टोरेंट एंड टूरिज़्म से जुड़े है। जिसमें कई छोटे रोज़गार में लगे लोगों को परेशानी हो सकती है, क्योंकि यही वो क्षेत्र है जहाँ कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है।

वैश्विक स्तर पर विभिन्न थिंक टैंक द्वारा दिए गई उपायों में बताया गया है की सभी देशों की सरकार को इस मंदी के संकट से उबरने के लिए तत्काल यह कदम उठाने जरूरी है। जिसमें पहला मज़दूरों एवं फर्मो हेतु सब्सिडी; दूसरा विशेष रूप से कमजोर समूहों को नकद एवं इन काइंड सहायता, तथा तीसरा उन लोगों और व्यवसायों के लिए टैक्स में राहत प्रदान करना जो इसका भुगतान नहीं कर सकते है। हालांकि यह तात्कालिक कदम हैं और मंदी से उबरने की लिए व्यापक रूप से योजना एवं दिशा निर्धारित करने की जरुरत है।


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