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बाल कविता ” नाच गान रंगों का त्यौहार “

बाल कविता ” नाच गान रंगों का त्यौहार “
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*डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी*

गढ़ निनाद समाचार।

जब   आता  होली   त्यौहार ,

भूल  जाते  अपना  घर-द्वार ।

बासन्ती रंग ओढ़कर  आती ,

सारी  धरती  मे  छा   जाती ।

होली   सबको   ऐसी  भाती ,

भूख  में  जैसे  गरम चपाती ।

सर्दी   इससे  दूर   है  जाती ,

गर्मी  निकट  आना  चाहती ।

दुल्हन  सी  लगती है  धरती ,

हर प्राणी का  मन  है  हरती ।

चारों  ओर  रंग-बिरंगे  फूल ,

हवा  चलती ठंडी-ठंडी कूल ।

हर मानव गाता रहता  फाग ,

सुनाई देते तरह-तरह के राग ।

खुशियों से मन जाता है  भर ,

आपस में  रंग  लगाता है हर ।

नाचते   ढोल – नगाड़ों   संग ,

पहले  कोरे  फिर  गीले  रंग ।

बूढ़े   युवा  हों   चाहे   बच्चे ,

रंग बिरंगे सब दिखते अच्छे ।

धर्म – जाति की तोड़ दीवार ,

इसे  मनाते सब  हैं  हर बार ।

नाच – गान  रंगों का त्यौहार ,

पकवान  बनते सब घर-द्वार ।


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Govind Pundir

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