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भाजपा के दांव, बिखरा हुआ विपक्ष

भाजपा के दांव, बिखरा हुआ विपक्ष
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विक्रम बिष्ट 

नई टिहरी। आगामी विधानसभा चुनाव के बाद पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने रहेंगे, भाजपा की यह घोषणा विपक्षियों खासतौर से कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है। वह हर तीर से कई निशाने साध रही है।

महज चार महीने के भीतर तीन मुख्यमंत्री, इस अनूठे रिकार्ड से भाजपा की बहुत छीछालेदारी हुई है। खासतौर पर तीरथ सिंह रावत के कार्यकाल में भाजपा की जमीन तेजी से खिसकने लगी थी। संविधानिक कारण की आड़ में तीरथ सिंह रावत को हटाकर भाजपा ने अपनी गलती को दुरुस्त करने की कोशिश की है।

चुनावी परिचर्चा

पुष्कर धामी दूसरी बार के विधायक हैं। सरकार और विधानसभा में भाजपा के पास उनसे बहुत वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं। इसलिए शुरू-2  में

धामी को सीएम की कुर्सी सौंपने को हल्के में लिया गया। लेकिन थोड़े ही दिनों में मुख्यमंत्री ने साबित किया है कि उनमें गंभीर और निर्णय लेने वाले नेता के सभी गुण हैं। उत्तराखंड की राजनीति में भाजपा के चाणक्य कहे माने जाने वाले भगत सिंह कोश्यारी पुष्कर धामी के राजनीतिक गुरु रहे हैं। त्वरित निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता कोश्यारी जी का विशिष्ट गुण है।

हाल में मुख्यमंत्री ने लोकहित की जो घोषणाएं की हैं, इनके लिए शासनादेश जारी किए जा रहे हैं, उससे लोगों को कुछ काम होते लग रहे हैं। दूरगामी महत्व की बड़ी घोषणाओं पर अमल होगा मुख्यमंत्री न बदलने की बात कहकर भाजपा मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही है। 

अभी तक कांग्रेस ही उत्तराखंड में भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी है। लेकिन कांग्रेस में नेतृत्व के सवाल पर अनुशासनहीनता की हद तक खींचतान जारी है। जिनके लिए विधायक बनने की राह आसान नहीं है, वे भी सीएम पद के दावेदार हैं। हरीश रावत न सिर्फ कांग्रेस के बल्कि उत्तराखंड के वरिष्ठतम नेता हैं। भाजपा के डा. मुरली मनोहर जोशी को 1980 के लोकसभा चुनाव में हराकर राष्ट्रीय राजनीति में 

प्रवेश करने वाले हरदा को अपने ही बोये उगाये कांटे चुभ रहे हैं। कांग्रेस के भीतर अपने ताकतवर  प्रतिद्वंदियों के खिलाफ उन्होंने नये-2 प्रयोग किए। अपने प्रतिद्वंदियों को दुश्मन बनाया और भरोसेमंद सहयोगियों, समर्थकों को खो दिया। 

चुनावी टिकटों से लेकर संगठन में अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण हरीश रावत कांग्रेस की राजनीति में कई मर्तबा गच्चा खा चुके हैं। वह कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हैं। वहां कांग्रेस की कुलह के जो भी कारण हों, कालिख के छींटे हरदा पर पड़ने स्वाभाविक हैं। उत्तराखंड के बाद असम और फिर पंजाब, विरोधियों को अंदर हों या बाहर मौका तो मिल ही रहा है। 

संगठन के मामले में कांग्रेस की स्थिति भाजपा के मुकाबले बहुत कमजोर है। बूथ स्तर पर पन्ना प्रमुख भाजपा की रीढ़ हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि भाजपा अपने साठ पार के दावे को आसानी से हासिल कर लेगी। 2017 का आंकड़ा दोहराने की संभावना बहुत कम है। पार्टी के कई विधायकों की स्थिति बहुत कमजोर मानी जा रही है। इनमें लगभग दो दर्जन टिकट दौड़ से बाहर हो सकते हैं। सत्ता के खिलाफ नाराजगी तो है ही महंगाई बेरोजगारी से लोग तंग हैं। कई स्थानीय कारण चुनाव में निर्णायक साबित होंगे।  फिर भी आगामी चुनाव में सत्ता भाजपा के हाथ से निकल जाएगी, संभावना कम ही है।


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Govind Pundir

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