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भगवान् को पाने की आकांक्षा से प्रेरित होकर की जाने वाली अखंड साधना से ही भगवत् प्राप्ति संभव- रसिक महाराज

भगवान् को पाने की आकांक्षा से प्रेरित होकर की जाने वाली अखंड साधना से ही भगवत् प्राप्ति संभव- रसिक महाराज
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रायवाला, हरिद्वार। वैशाख मास के उपलक्ष्य में आयोजित मासिक सत्संग कार्यक्रम में प्रवचन करते हुए नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि न तो घर छोड़ने से ही तत्काल भगवत् प्राप्ति होती है, और न घर में फंसे रहने से ही भगवत्प्राप्ति होती है भगवान् को पाने की आकांक्षा से प्रेरित होकर की जाने वाली अखंड साधना से । इस साधना में सबसे पहले आवश्यक है भगवान् की चाह होना। चाह इतनी बढे़ कि उसके सामने अन्य सारी इच्छाएं दब जाएं  मर जाएं। किसी भी वस्तु में मन न रहे, दिल न अटके फिर चाहे घर में रहे या घर से बाहर कहीं रहा जाए। जब तक शरीर है तब तक शरीर से कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा हां वह करना चाहिए अनासक्त होकर । नाटक के पात्र की भांति ऐसी निपुणता के साथ कि किसी को जरा सा भी असंतोष न हो पिता समझे ऐसा सुपुत्र किसी के नहीं है माता समझे मेरा बेटा सबसे बढ़कर सपूत है भाई समझे कि यह तो राम या भरत सा भाई है स्त्री समझे कि ऐसा स्वामी मुझे बड़े पुन्य  से मिला स्वामी समझे ऐसी पतिव्रता साध्वी स्त्री तो बस एक यही है।

इसी प्रकार हमारे व्यवहार से जिनसे  भी हमारा काम पड़े छोटे बड़े सभी संतुष्ट और  तृप्त हो सभी हमसे अमृत लाभ करें परंतु हमारी दृष्टि सदा अपने लक्ष्य पर लगी रहे।प्रत्येक व्यवहार को करें भगवान् की सेवा या भगवान् का प्रिय कार्य समझ कर । हमारा सोना -जागना, खाना-पीना, कहना- सुनना, रोना -हंसना ,देना -लेना ,सभी हो केवल भगवान् के लिए भगवान् की प्रीति के लिए अपने लिए कुछ भी ना हो। अपने को भी श्रीभगवान् के ही अर्पण कर दिया जाय फिर किसी भी स्थिति में न दुख होगा न चिंता व्यापेगी  और न संसार के किसी काम में अड़चन ही आएगी नाटक के पात्र की तरह सभी खेल सुचारु रूप से संपन्न होते रहेंगे। मान -अपमान, स्तुति –निंदा, हंसना- रोना सभी भगवान् की लीला के मधुर अंग  हो जाएंगे इस प्रकार का अभ्यास करके देखिए कुछ ही दिनों में अपूर्व शांति और आनंद का अनुभव होगा पाप -ताप तो अपने आप ही दूर चले जाएंगे।


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Garhninad Desk

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